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लेखनी प्रतियोगिता -01-Feb-2024

नवगीत

साजन साहब बनकर फिरते,
 निर्णय कब वह ले पाती।
राजकाज उनसे ही चलता,
 वह बस पद पा इतराती।
 नहीं उजाला उसका अपना,
 वह क्या जाने दिवस प्रभा।
सरपंच अंदर चूल्हा फूँके,
 पति की सजती राजसभा।

 जैसे पृथ्वी अक्ष घूमती,
 वह भी ऐसे घूम रही।
पाकर झूठी मान प्रतिष्ठा,
 नदिया सम वह झूम रही।
 प्रस्तर उसका नित पथ रोकें,
 समझ सका है कौन व्यथा।
 सरपंच अंदर चूल्हा फूँके,
 पति की सजती राजसभा।।

 पूस माह की धूप सरीखा,
 उसका है अस्तित्व यहाँ।
कारावास भोगती वह नित,
खुला गगन वो मिला कहाँ।
 झाड़ू- बर्तन, चूल्हा -चाकी,
आजीवन ही रहे सखा।
सरपंच अंदर चूल्हा फूँके,
पति की सजती राजसभा।।

 स्वर्णिम आभा को ढक डाला,
 मर्यादा के घूंघट में।
 कितने बंधन बाँध दिए हैं,
खुलती सी उसकी लट में।।
 वह तो ऊषा जेठ माह की,
 क्षीण हुई सब कांति विभा।
 सरपंच अंदर चूल्हा फूँके,
 पति की सजती राजसभा।।

प्रीति चौधरी "मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
 उत्तर प्रदेश

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5 Comments

नंदिता राय

12-Feb-2024 05:22 PM

Nice

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Alka jain

06-Feb-2024 11:45 AM

Nice

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Gunjan Kamal

02-Feb-2024 04:21 PM

👏👌

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